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Sunday, 14 February 2021

"इस मार्ग के सेवक, सेवकोंको गलती से छुड़ाते है" हा लेख आवर्जून वाचन करा, नमस्कार.!

 


【"इस मार्ग के सेवक, सेवकोंको गलती से छुड़ाते है"】

महानत्यागी बाबा जुमदेवजींच्या मार्गदर्शनानुसार,

"इस मार्ग के सेवक, सेवकोंको गलती से छुड़ाते है, यही परमार्थ का कार्य है। लोग, लोगों को छुडाते है यही सही परमार्थ है"। बाबांच्या या मार्गदर्शनाला आपण कशाप्रकारे समजतो।

                          【लेख स्पष्टीकरण】

हम सभी सेवक जानते है कि, बाबाने हमे हर समय, योग्य शिक्षा दी है, औऱ दैवी शक्ति के अनुभव मार्गदर्शन के माध्यम से विस्तार पूर्वक समजाये है।

आजका विषय यह हमें सीख देता है कि, जिस तरह हम दुखी थे, सुख की पहचान करने हेतु इधर उधर भटकते रहे थे। जब किसी सेवक के माध्यम से इस मार्ग की जानकारी मिली औऱ हम सुखमय जीवन का आनंद लेने लग गए।

महान धर्मगुरु महानत्यागी बाबा जुमदेवजीने कड़ी मेहनत और बलिदान के माध्यम से मानव धर्म की स्थापना की। इस मानवधर्म मे, केवल एक ईश्वर है जो इस सृष्टि का निर्माता और दुनिया का कथन है। महान धर्मपरायण बाबा जुमदेवजीने अपने घर की देखभाल की और एक भगवान को प्राप्त किया। इस धर्म मे कर्म बहुत महत्वपूर्ण है। ईश्वर हमे उसी तरह से फल देता है जैसे हम कर्म करते है।

जब हम इस मार्ग के सेवक बने तो, बाबा द्वारा दिये नियम अनुसार जीवन व्यतीत करने लगे। गृहस्थी जीवन में सेवक कभी कम ज्यादा कर देता है, इसलिए नियमों से चूक जाता है। इसका फल भी स्वयं ही पाता है। इस परिस्थिति में कोई अन्य सेवक आकर हमे अपनी गलती का एहसास करवाते है, एक नई उम्मीद हमे देते है। जिससे हमारा आत्मबल मजबूत होने में सहायत होती है।

जब कोई व्यक्ति अपने कर्मो के कारण अनजाने में कुछ करता है, तो वह दुखी हो जाता है और नोकर को इसके परिणाम भुगतने पड़ते है; लेकिन अगर नोकर गलती को याद करता है और माफी माँगता है, तो उसका दुःख दूर हो जाता है। इस तरह, यहां तक कि नोकर भी एक दूसरे को छोटी और बड़ी गलतियों से बचा सकते है क्योंकि कोई देख रहा है कि हम क्या कर रहे है। अगर नोकर गलती करता है और हम उसे अपनी ऑखों से देखते है और उसे याद दिलाते है, तो वह गलती नही करेगा। इसलिए वह पीड़ित नही होगा, और वह फिर से गलती नही करेगा।

जब किसी जगह सेवक जाते है तो, वहाँ उन्हें कोई दुःखी कष्टी व्यक्ति मिले तो वे मार्ग के प्रति जानकारी देते है। बाबा द्वारा किये गए मार्गदर्शन विस्तार से समझाते है। जिससे वह अन्य व्यक्ति मार्ग में आनेसे सुखी हो जाता है। जब सेवक किसी अन्य व्यक्ति को मार्ग के प्रति जानकारी देते है, तो किसी भी प्रकार का मूल्य लेते नही, और ना ही उस समय उनके यहां एक कप चाय पीते है।

क्योंकि जब हम किसी दुखी व्यक्ति को मार्ग की जानकारी देते है, तो उस समय हमारे भीतर निष्काम सेवा भाव रहता है। जिसे परमार्थ का सत्य कार्य कहा जाता है। औऱ सदैव यह सेवा भाव मन मे रखकर पीड़ितों की सहायत करनी चाहिए।

इसलिए बाबा कहते है।

"इस मार्ग के सेवक सेवकों को गलती से छुड़ाते है, यही परमार्थ का कार्य है, लोग लोगों को छुडाते है यही सही परमार्थ है"।

लिहिण्यात काही चुक-भुल झाली असेल तर "भगवान बाबा हनुमानजी" व "महानत्यागी बाबा जुमदेवजी" यांना क्षमा मागतो.

नमस्कार...!

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